भारत में लगभग 1500 से 2000 बच्चे हर साल रेटिनोब्लास्टोमा (आँखों में कैंसर) का शिकार होते है।
सही समय पर इलाज से 90 प्रतिशत बच्चों में आंख बचाई जा सकती है।
रेटिनोब्लास्टोमा : डॉक्टर संतोष होनावर – निदेशक, राष्ट्रीय रेटिनोब्लास्टोमा फाउंडेशन, सेंटर फोर साईट, हैदराबाद से बातचीत
रेटिनोब्लास्टोमा क्या है?
रेटिनोब्लास्टोमा एक प्रकार का आँखों का कैंसर है जो बच्चों में होता है और ये सबसे आम कैंसर है। सभी आई कैंसर में से बच्चों में सबसे ज़्यादा पाया जाने वाला यह कैंसर (रेटिनोब्लास्टोमा) पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग 5000 बच्चो को हर साल अपना शिकार बनाता है जिसमें से 1500 से 2000 बच्चे हमारे देश भारत के होते हैं। एक अनुमान के मुतबिक 10000 से 15000 पैदा हुए बच्चों में से एक को यह बीमारी होती है। यदि सही समय पर इसका पता नहीं चले तो यह बच्चो को पूरी तरह से दृष्टिहीन बना देता है। बच्चो की आँखों के लिए यह एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है लेकिन यदि सही समय पर पता चल जाए और इसका इलाज हो जाए तो 90 प्रतिशत बच्चो की आँखों को बचाया जा सकता है।
किस उम्र के लोगों को इसका ज़्यादा ख़तरा रहता है?
रेटिनोब्लास्टोमा बच्चों की बीमारी है। जन्म से 3 साल तक के बच्चो में ख़तरा बहुत अधिक रहता है। 3 से 6 साल तक ख़तरा कम रहता है। उसके बाद यह न के बराबर होता है।
इसके लक्षण क्या क्या है?
- बच्चों की आंख में सफ़ेद दिखाई देता है।
कैमरे में फोटो खींचते वक़्त आँखों पर रेडलाइट रिफलेक्ट होना बहुत आम है। वैसे ही अगर आंख में लाल या काले की जगह सफेद या पीला दिखाई देता है तो इसका मतलब आंख में कुछ गड़बड़ है। ये कैटरेक्ट हो सकता है या फिर यह रेटिनोब्लास्टोमा हो सकता है। यदि ऐसा किसी भी बच्चे की आंख में दिखाई देता है तो तुरंत बच्चे को आंखों के डाॅक्टर के पास ले जाना चाहिए। - भैंगापन – आंखे स्थिर नहीं है या बच्चों में भैंगापन है तो ये भी रेटिनोब्लास्टोमा का लक्षण है।
- आंखे लाल होना – चोट लगने के बाद आंखे लाल होना ठीक है, पर अगर बिना किसी कारण के चार से पांच दिन तक बच्चे की आंखे लाल रहती हैं और फिर बच्चा आंख में दर्द बताता है या आंख को पकड़कर रोता है तो डाॅक्टर के पास ले जाना चाहिए।
- आँख का काले की जगह सफ़ेद होना – बच्चे की आंख में काले की जगह सफ़ेद हो तो ऐसी चीज़ भी रेटिनोब्लास्टोमा हो सकती है।
रेटिनोब्लास्टोमा का पता कैसे लगाया जा सकता है?
स्क्रिीनिंग द्वारा रेटिनोब्लास्टोमा का पता लगाया जा सकता है। हर बच्चे की आँखों को इम्युनाइज़ेशन के वक़्त चेक करना चाहिए। अगर बच्चे की आंखे इम्युनाइज़ेशन के वक़्त चेक नहीं की जाती तो बड़े होने पर बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। पैदा होने के तुरंत बाद यदि आंखों का ठीक से चेकअप हो तो बाकि बिमारियों के साथ साथ रेटिनोब्लास्टोमा का भी पता चल जाएगा।
क्या रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज हिन्दुस्तान में हो सकता है?
इसका इलाज बिल्कुल हो सकता है। जितने भी कैंसर होते है उसमे रेटिनोब्लास्टोमा के इलाज में सफलता का प्रतिशत बहुत ज्यादा होता है। जहाँ दूसरे ज़्यादातर कैंसर में 60 से 70 प्रतिशत चांसस होते हैं वही इसमें 99 प्रतिशत बच्चे की आंख को ठीक किया जा सकता है। जान को कोई ख़तरा न होते हुए भी 99 प्रतिशत बच्चे की आंख के साथ-साथ नज़र भी बचा सकते हैं। ये ऐसी बीमारी है जिसमें इलाज बहुत ही अच्छे तरीके से संभव है।
इसके इलाज के लिए कितना खर्चा हो सकता है, और इलाज के बाद क्या आंख की संरचना में कोई बदलाव आता है?
ये बीमारी की स्टेज के उपर निर्भर करता है। अगर शुरूआती स्टेज में कोई बच्चा मिल गया तो लेज़र से दो से ढ़ाई हज़ार में हो जाता है। मान लीजिए किसी ने थोड़ी देर कर दी तो क़ीमत भी बढ़ जाती है। पांच से छ हज़ार हर बार भी देना पड़ सकता है। अधिकतम तीस से चालीस हज़ार लग जाते हैं। अगर और देर हुई तो आंखे निकालनी पड़ती है। आंखे निकालने के बाद उसे ऐसे ही नहीं छोड़ दिया जाता है उसकी जगह कृत्रिम आंख लगाई जाती है। जो बिल्कुल सामान्य लगे। मां-बाप को ऐसा ना लगे की वो नकली है। इस सर्जरी में 50 से 60 हज़ार का खर्चा होता है। इलाज के बाद लगभग 90 प्रतिशत बच्चों में आंख बचाई जाती है और 85 प्रतिशत बच्चों में नज़र भी बचाई जा सकती है। जिनकी आंखे नहीं रही उनके लिए कृत्रिम आंख लगाना पड़ता है। लगभग 10 प्रतिशत बच्चों में कृत्रिम आंख लगाना पड़ता है और लगभग 15 प्रतिशत बच्चों के आंख की नज़र कम हो जाती है या नहीं रहती। उनको दूसरी आंख के सहारे रहना पड़ता है।
ऐसी कौन सी सावधानियां हैं जिनका पालन करके हम शुरूआत से ही रेटिनोब्लास्टोमा से बच सकते है?
अगर परिवार में किसी को रेटिनोब्लास्टोमा है तो बच्चों को ज़रूर हो जाता है। ये एक जनरेशन में हो सकता है तो जिनको परिवार में ये रेटिनोब्लास्टोमा है वो जब बच्चा पेट में रहता है तभी जेनेटिक टेस्ट से पता लगा सकते हैं कि बच्चा भी इस असमान्यता से ग्रसित है और पैदा होते ही उसका इलाज करा सकते हैं। और अगर बच्चे को जेनेटिक अबनाॅर्मेलिटी नहीं है तब बच्चा सामान्य ही होगा। हम लोग फ़र्टीलाइज़ेशन के पहले ही प्लांटेशन स्क्रीनिंग करके टेस्ट ट्यूब में ही उसे ठीक कर देते हैं। अगर किसी को पता है कि परिवार में ये बिमारी है तो स्क्रीनिंग से वो अपने बच्चे को भी बचा सकते हैं।
इस बिमारी के बारे में आप कुछ और जानकारी देना चाहेंगे?
अहम बात यही है कि अगर बच्चे की आंख में सफ़ेद रिफ्लेक्ट हो रहा हो, भले ही वो पड़ोस का बच्चा हो, कोई ट्रेन में मिला या कोई खेलते हुए मिला, कोई भी हो अगर किसी की भी आंख में काले की जगह सफेद दिखाई दे तो उनको फ़ौरन सावधान करना चाहिए कि ये रेटिनोब्लास्टोमा हो सकता है। उनको तुरंत डाॅक्टर के पास ले जाना चाहिए। इस चीज़ को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। अगर डाॅक्टर बोले की कुछ भी नहीं है तो दूसरी राय ज़रूर ले लेनी चाहिए। कई बार आंखों के आम डाॅक्टर भी इसे पकड़ नहीं पाते। पर ऐसे में दूसरे डाॅक्टर के पास ज़रूर जाना चाहिए। अगर जल्दी पता चल जाता है तो बच्चे की जान के साथ साथ आंख भी बचाई जा सकती है।
आपकी फाउंडेशन (राष्ट्रीय रेटिनोब्लास्टोमा फाउंडेशन) इस क्षेत्र में क्या काम कर रही है?
हमारी फाउंडेशन एक ट्रीटमेंट फाउंडेशन है। भारत में 46 मुख्य आंखों का अस्पताल है पर जो हैदराबाद में है वो आई कैंसर का स्पेशलिस्ट है। इस फाउंडेशन में हम जो ट्रीटमेंट अंतराष्ट्रीय स्तर पर होता है उसे हम राष्ट्रीय स्तर पर कर रहे हैं। जो कोई भी भारत में रेटिनोब्लास्टोमा से पीड़ित हो उसे इलाज के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा, हम उसे भारत में ही ठीक कर सकते हैं। दूसरा आंखों के डाॅक्टर और विशेशज्ञों को इस बारे में बताना की वो शुरूआती स्टेज में ही रेटिनोब्लास्टोमा को पकड़ लें। तीसरी चीज़ ये है कि लोगों को जागरूक करना। एक और चीज़ ये है कि हमारी फाउंडेशन कई बच्चों के इलाज में भी मदद करती है, जो भी सरकार से उन्हें फंडिंग मिलनी चाहिए। कई लोगों को पता भी नहीं कि सरकार से कैंसर के इलाज के लिए तीन लाख रूपए तक की मदद मिलती है। उसका रेटिनोब्लास्टोमा में एक बटे में दसवां भाग खर्चा हो जाता है। प्रधानमंत्री राहत कोश से परिवार को तीन लाख तक का मुआवज़ा ज़रूर मिलता है। तो जिसको भी चाहिए वो ले सकता है। रेटिनोब्लास्टोमा से जुड़े जो भी छोटे बड़े काम होते हैं वो हम लोग करने की कोशिश करते हैं।