डायबिटिक रेटिनोपैथी: क्या कहती है आयुर्वेदिक चिकित्सा

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डॉ. प्रताप चौहान, निदेशक – जीवा आयुर्वेदा से बातचीत

आयुर्वेद के नजरिए से डायबिटीज को आप कैसे देखते हैं?
डायबिटीज को केवल ब्लड शुगर को नियंत्रित कर इसके प्रभाव को नहीं रोका जा सकता है। आयुर्वेद में इस बीमारी को धातु क्षय के नजरिए से देखा जाता है। शरीर में सात प्रकार के धातु होते हैं। ये हैं रस, रक्त, मांस, मेद (फैट), अस्थि, मज्जा और शुक्र । शरीर के टिशू व ऑर्गन इन धातुओं से बनते हैं। धातु क्षय से डायबिटीज और इससे जुड़ी अन्य समस्याएं होने लगती हैं। धातु क्षय रोककर बीमारी को रोका जा सकता है।

डायबिटीज में नेत्न पर कैसे और क्या प्रभाव पड़ता है?
एक उदाहरण दे रहा हूं। यदि आप पानी को किसी बेहद पतला पाइप से गुजारें तो इसके रु कावट को भी पार कर आगे बढ़ जाएगा। लेकिन गाढ़ा शर्बत इसमें डालें तो इसका फ्लो कम होगा।
डायबिटीज के दौरान खून में शुगर की मात्ना बढ़ने से नसों में ऐसा ही होता है। डायबिटीज के दौरान एबनॉर्मल रक्त पूरे शरीर में भ्रमण करता है। इससे शरीर के अंग क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। यह आंखों की नसों में भी हो सकता है। इसमें रेटिना पर प्रभाव पड़ता है। इसे डायबिटिक रेटिनोपैथी कहते हैं।
डायबिटिक रेटिनोपैथी में अंधापन हो सकता है। लेकिन मरीज यदि शुरू में आयुर्वेदिक चिकित्सा ले तो वह ठीक भी हो सकता है। ज्यादातर मामलों में हम बीमारी को उसी अवस्था में रोके रखते हैं। मतलब कि रेटिना ज्यादा प्रभावित नहीं होता है।

आयुर्वेद में डायबिटिक रेटिनोपैथी का इलाज क्या है?
डायबिटीज के दौरान पैनिक्रयाज इंसुलीन नहीं बनाता है या इंसुलीन खून तक नहीं पहुंच पाता है। आयुर्वेद में इसके मूल कारण पर ध्यान दिया जाता है। धातु क्षय को रोककर इसे ठीक किया जाता है। इससे बाकी अंग भी ठीक होते हैं।
खासकर डायबिटिक रेटिनोपैथी के मामले में पंचकर्म और नेत्नवस्ति या अक्षितर्पण चिकित्सा से इलाज होता है। इससे आखों को पोषण मिलता है। नेत्नवस्ति क्रि या के दौरान आटे की लोई बनाकर आंख के चारों तरफ घेरा बनाया जाता है। इसके अंदर मेडिकेटेड घी डाली जाती है। यह रेटिना का पोषण करता है। इसका असर धीरे-धीरे पड़ता है। इस चिकित्सा से डायबिटिक रेटिनोपैथी के मरीज का मर्ज आगे नहीं बढ़ेगा। बल्कि ठीक होने की संभावना बढ़ती जाएगी। कुछ आयुर्वेदिक दवाएं भी हैं जो रेटिना की शक्ति को बढ़ाती हैं।
डायबिटीज के इलाज में शिरोधारा का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें शरीर पर तेल की मालिश के साथ-साथ लगातार प्रवाह के रूप में माथे पर औषधीय द्रव डाला जाता है।

क्या आयुर्वेदिक से डायबिटिक रेटिनोपैथी का पूर्ण इलाज है?
आयुर्वेद का मानना है कि यदि सही ढंग से उपचार किया जाए तो अंगों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस पर अब भी रिसर्च हो रही हैं। यदि रोग काफी पुराना हो तो इसे ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन बेहतर स्थिति जरूर लाई जा सकती है। जैसा पहले मैंने बताया है कि हम मानते हैं कि किसी अंग के खराब होने की वजह धातु क्षय है। इसलिए धातु क्षय रोककर इलाज होता है।
हम यह नहीं कहते हैं कि बीमारी सौ फीसदी ठीक हो जाएगी। लेकिन उसे उसी स्थिति में जरूर रोक सकते हैं। यह भी अच्छी बात है। जहां तक डायबिटिक रेटिनोपैथी का सवाल है, अन्य चिकित्सा पद्धति से कई मरीज अंतत: अंधे हो जाते हैं। लेकिन आयुर्वेद बीमारी को वहीं रोके रखता है। ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है और रेटिना को ताकत मिलती है।

आयुर्वेद के कुछ घरेलू नुस्खे बताएं, जिससे डायबिटिक रेटिनोपैथी के मरीज को लाभ हो।

  • त्रिफला को कूटकर दानेदार चूर्ण बना लें। रात को इसका एक चम्मच आधे ग्लास पानी में डाल दें। सुबह कपड़े से इस पानी को अच्छी तरह छान लें। ध्यान रखें कि इसमें त्रिफला का दाना न हो। इस पानी से आंख धोएं।
  • पचास ग्राम बादाम, पचास ग्राम सौंफ और दस ग्राम सफेद मिर्च लें। इसे कूटकर चूर्ण बनाएं। सुबह और शाम एक-एक चम्मच सेवन करें।
  • गुलाब जल से आखें धो सकते हैं।

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