अधिकतर दृष्टिहीन लड़कियां सामाजिक दबाव और डर से घर में बैठी होती हैं। उन्हें पता नहीं होता है कि दुनिया में क्या हो रहा है। ऐसे में वह अपनी पूरी पहचान खो चुकी होती है इस मानसिक समस्या से बाहर निकालना बड़ा मुश्किल होता है। आखिर कब तक वह डर के साए में रहेगी और कब स्वावलंबी हो पाएगी। जब माता पिता बुजुर्ग हो जाते हैं तो समझ आता है कि स्वावलंबन कितना जरूरी है। लेकिन तब तक काफी कीमती वक्त बीत जाता है।
माता-पिता अपना डर दृष्टिहीन लड़कियों पर न थोपें तो बेहतर होगा। उन्हें डर लगता है कि बेटी बाहर कैसे जाएगी। प्रशिक्षण के बाद दृष्टिहीन लड़कियां ज्यादा सफल हो जाती हैं। कई बार तो ऐसा देखा गया है कि अकेली लड़की ही पूरे गांव में पढ़ पाई। क्योंकि परिवार ने उसे दृष्टिहीन बच्चों के स्कूल में भेजा।
शालिनी खन्ना, निदेशक, नेशनल एसोसिएशन फॅार दि ब्लांइड (वूमेन), नई दिल्ली से दिव्या साहू की बातचीत
दृष्टिहीन युवतियों को कैसे आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
बहुत सारी लड़कियां जो पहले देख पाती थीं, लेकिन तकरीबन 16-17 साल की उम्र में नत्नहीन हो गईं। अब वह नहीं देख पाती हैं। परिवारवालों ने लगातार घर में रखा और इसकी वजह से उनका खुद पर विश्वास खत्म हो चुका होता है। उन्हें भरोसा नहीं होता कि बिना देखे वह खुद अकेली सड़क पर चल पाएगी, रसोई में आग और छुरी के साथ काम कर पाएगीं। दृष्टिहीन युवतियों को यह सब सिखाना स्वावलंबन के लिए बहुत जरूरी है।
सबसे पहले उन्हें अकेले घर का काम और सड़क पर चलने का प्रशिक्षिण दिया जाना चाहिए। उन्हें मानसिक तौर पर अपना काम खुद करने की कोशिश करने के लिए तैयार किया जाये। हालांकि यह सब सीखने में उन्हें लंबा वक्त लगता है।
आजकल की मॉडर्न शिक्षा भी दृष्टिहीन लड़कियों व महिलाओं को दी जानी चाहिए। ऐसा प्रशिक्षण, जिससे उन्हें रोजगार मिल सके। इसके लिए कम्प्यूटर, रिसर्च की ट्रेनिंग भी दी जा सकती है। वे जिस क्षेत्न में चाहें, उन्हें प्रशिक्षण मिल सकता हैं। जो लड़कियां बिलकुल पढ़ी-लिखी नहीं होती हैं, उन्हें हैंडीक्र ाफ्ट का हुनर सिखाया जा सकता है। हाल ही में मसाज-स्पा का प्रशिक्षण शुरू किया है। स्पा की बहुत डिमांड है। खास बात है कि दृष्टिहीन लोगों में सीखने का कौशल बेहद ज्यादा होता है। वह बारीकी से हर चीज को महसूस कर लेते हैं। प्रशिक्षण के बाद ज्यादातर लड़कियां व महिलाओं को रोजगार मिल जाता है।
दृष्टिहीन लड़कियां भी समाज का हिस्सा हैं, उनके विकास के लिए क्या करने की जरूरत है?
सबसे पहले तो आप दृष्टिहीन लड़कियों पर विश्वास करें कि वह भी सामान्य तौर पर काम कर सकती हैं। यदि आपके घर में कोई दुर्घटनावश दृष्टिहीन हो गया या जन्म से दृष्टिहीन पैदा हुआ तो समाज में बराबरी से ध्यान देने की जरूरत है, खासकर लड़कियों का। सबसे पहले यह बात मन से निकालनी होगी कि यदि आपको दिखाई नहीं, देता है तो दुनिया ही खत्म हो गई। यदि आप खुद के लिए ऐसा सोच सकेंगे तभी दृष्टिहीन लड़कियों को उसकी पहचान दिला पाएंगे।
मेरा अनुभव है कि ट्रेनिंग के बाद दृष्टिहीन लड़कियां ज्यादा सफल हो जाती हैं। कई बार तो ऐसा देखा गया है कि अकेली लड़की ही पूरे गांव में पढ़ पाई। क्योंकि परिवार ने उसे दृष्टिहीन बच्चों के स्कूल में भेजा। लेकिन जब वह घर वापस लौटती है तो किसी काम की नहीं रहती है। इसकी वजह है परिवार की मानसिकता। मां-बाप उसे घर में कोई काम नहीं करने देते हैं। न ही उसकी शादी के बारे में सोचते हैं। हमने यहां तक देखा है कि मानिसक रूप से कमजोर लड़के की शादी में दहेज में दृष्टिहीन लड़की दे दी गई। घर में किसी काम का नहीं छोड़ा जाता है। वह इंतजार में रहती है कि घर के लोग आएं और खिलाएं। ऐसे में वह दिन भर भूखी रहती हैं।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में दृष्टिहीन लड़कियों का क्या भविष्य है।
मुङो दृष्टि वाली और दृष्टिहीन लड़कियों में कोई फर्क महसूस नहीं होता है। यदि लड़कियों को पढ़ने और आगे बढ़ने का मौका दें, तो वह लड़कों से आगे रहती हैं। मेरा अनुभव रहा है कि लड़कियों को प्रशिक्षण देने पर 120 प्रतिशत रिजल्ट मिलता है। दरअसल, ऐसी लड़कियां इतना ट्रोमा ङोल चुकी होती हैं कि, वह स्वावलंबी बनने में पूरी ताकत लगा देती हैं। हमने कई एक्सपोर्ट फैक्ट्रियों में नेत्नहीन लड़कियों को काम पर लगवाया है। वे सफलता पूर्वक काम कर रही हैं। बिहार व यूपी के रूरल इलाकों से भी कई युवितयां आई और उन्होंने ओपेन स्कूलिंग कर ग्रेजुएशन किया। इसके बाद बीएड कर अपने इलाके में शिक्षक बन गई।
समाज में लड़कियों को दबा कर रखा जाता है, ऐसे में सुरक्षा के लिए क्या प्रयास हों?
हम सभी के लिए सबसे बड़ी परेशानी है कि अब तक लड़कियों व महिलाओं के सुरक्षा बड़ा मुद्दा बना हुआ है। हम दृष्टिहीन युवितयों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देते हैं, ताकि वह आत्मरक्षा कर सकें। हमने उन्हें जानकारी दी हुई है, कि परेशानी होने पर कहां फोन करें। मेट्रो में सफर सुरिक्षत रहता है, हां बसों में अभी भी दिक्कत है।
दृष्टिबाधित लड़कियां क्या तकनीकि गैजेट्स का भी इस्तेमाल भी करती हैं?
जिस तरह आप कम्प्यूटर सीखते हैं, वैसे ही दृष्टिहीन लोग भी कम्प्यूटर सीखते हैं। अब तो मोबाइल में भी सॉफ्टवेयर डालकर दृष्टिहीन लड़कियां बहुत अच्छी तरह इसका प्रयोग कर सकती हैं। तकनीकि गैजेट्स अभी भी बहुत महंगे हैं, इसलिए उस लड़की के परिवार की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है कि वह खुद के लिए कौन सा गैजेट ले पाती है। घर की रसोई में भी गजेट्स हैं। उदाहरण के तौर पर माइक्र ोवेब। इसका इस्तेमाल वह बहुत अच्छी तरह करती हैं।
You may also like:
Divya Sahu
Latest posts by Divya Sahu (see all)
- Rights provide an opportunity to take step towards progress - December 5, 2013
- Diabetic Retinopathy : What does Allopathy says - November 26, 2013
- सारे समाज का डर दृष्टिहीन लड़कियां क्यों भुगतें - October 13, 2013