रितु वांट्स 2 सी
दृष्टि 2011 गोल्डेन आई विनर फिल्म
यह वह घड़ी थी जब मेरी शिक्षा, मेरा अनुभव फिर से शून्य पर पहुंच गया था. सात साल की रितु जिसकी ऑखों ने अभी तक किसी भी रंग को देखा नहीं था उसने मेरे अनुभवी ऑखों को फिर से नई तरीके से देखना सिखाया. अंतरदृष्टि की लघु चित्र प्रतियोगिता दृष्टि 2011 में भाग लेने के लिए जब सोचा था तब हमारी स्किृप्ट कुछ और थी, मगर शूटिंग स्पाट देखने के लिए जब ब्रेल प्रेस गई तो वहा रितु को देखा और हमने स्किृप्ट ही बदल दी. इतनी सहजता से रितु ने इतनी छोटी सी उम्र में सिर्फ आवाज को सुनकर और सूंघकर ही चीजो को पहचान लेती थी, यह मेरे लिए एक हैरान कर देने वाली बात थी. दुख की बात यह थी कि उसे हमारे फिल्म के हर डायलाग पर हैरानी हो रही थी, ‘’कोई भी व्यक्ति मृत्यु उपरांत ऑखे दान कर सकता है’’, यह बात उसे मालूम नहीं थी. भगवान को एस.एम.एस. करने पर ऑखे मिल सकती है, यह विश्वास उसके मन में बैठ गया. मुझे दुख है कि रितु का विश्वास कभी टूट जायेगा मगर यह विश्वास अडिग रहे कि ऑखों को दान करनेसे किसी की ऑखों की रोशनी वापस आ सकती है, जिन्होंने इसके पहले सिर्फ सूंघकर ही पहचाना था, वह भी इसको देख सकेंगे. जी हॉं, यह कोशिश हम मिल कर सफल कर सकते है. सिर्फ एक रितु ही नहीं बल्कि रितु जैसी लाखों रितु आपका इंतजार कर रही है.