दृष्टिबाधितों की दुनियां के लिए मेरी यात्ना मेरे कालेज के दिनों में ही शुरू हुई जब मेरे सबसे प्रिय अध्यापक डा. निखिल जैन हम लोगों को दृष्टिहीनों के स्कूल (ब्लाइंड रीलीफ एसोसियेशन), नई दिल्ली ले गये। हम लोग आश्चर्यचकित रह गये जब हमने वहां के बच्चों और उनकी छोटी सी दुनियां देखी। हमारे अध्यापक ने हमें सभी छात्नावास, कक्षाएं, गलियारा आदि बिना सफेद छड़ी की मदद के दिखाया। उनके लिए पढ़ना, साथ-साथ चाय समोसे और उनके साथ दिन प्रतिदिन की गपशप साझा करना एक दिलचस्प अनुभव प्रदान करता था। कालेज की पढ़ाई समाप्त होने के साथ ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु हम लोग इस खूबसूरत दुनियां से अलग हो गये। कुछ सरकारी कार्यो के लिए अखिल श्रीवास्तव से मिलने के बाद यह सब एक बार फिर से पुर्नजीवित हो गया। यह जानकर अच्छा लगा कि कुछ लोग तो ऐसे हैं जो सही मायने में इंसानों जैसे काम कर रहे हैं। यह अखिल ही थे जिन्होंने हमें अपना विजिटिंग कार्ड ब्रेल में करवाने के लिए प्रोत्साहित किया। विजिटिंग कार्ड पर ब्रेल से लिखने के कारण कुछ दृष्टिहीनों को तो कुछ पैसे कमाने में मदद मिलती है, उनके पास पैसे कमाने के रास्ते सीमित होते है।
जे.एन.यू. में संकाय सदस्य के रूप में शामिल होने के बाद मुङो बहुत सारे दृष्टिबाधित छात्नों और विद्वानों से मिलने का मौका मिला। मुङो उनके साथ बात करना, अनुभवों को साझा करना अच्छा लगता है। डा. शिवजी कुमार जो कुछ दिनों पहले ही जे.एन.यू में संकाय सदस्य के रूप में शामिल हुए थे, से मिल कर बहुत अच्छा लगा। कुछ वर्षो तक उन्होंने यूरोप में रह कर पढ़ाई की थी। जब मैंने उन्हें अपना विजिटिंग कार्ड दिया तो उनकी प्रतिक्रि या देख कर मैं आश्चर्य चकित रह गया। उन्होंने कहा ‘मै इस तरह के विजिटिग कार्ड भारत में पहली बार देख रहा हूं, इस तरह की सुविधाएं तो हमें सिर्फ यूरोपियन देशों में ही कुछ व्यक्तियों द्वारा मिलती है।
उनकी इस प्रतिक्रि या से मुङो यह समझ में आया कि दृष्टिबाधितों के लिए बहुत सारे काम करने की जरूरत है। इस बात ने मुङो और प्रोत्साहित किया कि मैं दूसरे लोगों को भी दृष्टिबाधितों के लिए जागरूक करूं।


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