सुरक्षा और स्वतंत्नता यह ऐसे दो शब्द हैं, जैसे सिक्के के दो पहलू, कभी कभी इन में कल्पनां की उड़ान होती है तो कभी डर की परछाइं। जहां तक एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की बात करें तो उसके जीवन में इन दो शब्दों का जितना महत्व है उतना ही महत्व एक दृष्टिहीन व्यक्ति के जीवन में भी है।
कभी कभी हम इन दो शब्दों में भेद करना ही भूल जाते हैं। आज-कल की अलग-अलग घटनाओं की वजह से हमारे जैसे दृष्टिहीन व्यक्तियों का जीवन कुछ ज्यादा ही बंधनों से घिर गया है। और फिर एक दृष्टिहीन लड़की का जीवन तो और भी मुश्किलों से घिर जाता है।
जब कोई दृष्टिहीन बालक का जन्म होता है तो उसकी स्वतंत्नता और सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इससे हमारे जैसे दृष्टिहीनों के मन में कई प्रकार के डर घर कर जाते हैं। इसकी शुरूआत बचपन से ही हो जाती है। फिर चाहे वह खेलकूद की बात हो या पढाई-लिखाई की, हर बात के लिए डर बना रहता है। कई जगह सुरिक्षत तो हो जाते हैं पर कभी स्वतंत्न नहीं बन पाते, और इन्ही कारणों से हम अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। फिर हम यही सोचने लगते हैं कि हम जीवन में कुछ खास नही कर पाएंगे।
यह तो एक दृष्टिहीन व्यक्ति की बात हुई, पर अगर दृष्टिहीन एक लड़की हो तो उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसलिए तो दृष्टिहीन लड़कों के मुकाबले लड़कियों में साक्षरता का प्रतिशत कम पाया जाता है।
यहा़ं हम सुरक्षा के खिलाफ नहीं है, बल्किअति सुरक्षा के खिलाफ हैं। मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि हम स्वतंत्नता का दुरुपयोग करे। हमें दोनों बातों में सही तालमेल बिठाना जरु री है, इसके लिये यह जरूरी हो जाता है कि हर दृष्टिहीन बालक के माता-पिता अपने बालक को सही शिक्षा दें। अक्सर ऐसा होता है कि माता-पिता अपने बालक को सुरक्षा की चिंता के कारण उसे शिक्षा नहीं देते। अगर माता-पिता अपनी सोच बदलेंगे तो हर दृष्टिहीन बालक शिक्षा ले पाएगा, और हर तरह से स्वतंत्न बन जाएगा।
समाज की भी दृष्टिहीनों के प्रति कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं। हम यह नही कहते कि हमें दया की दृष्टि से देखा जाए पर हमें मदद तो कर ही सकते है।
सरकार को भी हमारी सुरक्षा के लिये नई-नई योजनाएं बनानी चाहिए और उन पर अमल होना भी जरु री है। जब इस तरह की पहल होगी तभी हर माता-पिता अपने दृष्टिहीन बालक को स्वतंत्नता दे पाएंगे।
जब हर माता-पिता अपने दृष्टिहीन बालक को हर बात मे स्वतंत्नता देंगे तभी हम जीवन में हर मंजिल को पाएंगे। हम लड़कियों को भी हर जगह काम करने की स्वतंत्नता हर माता-पिता को देनी चाहिए।
जब हम समाज और सरकार से सुरक्षा और स्वतंत्नता की अपेक्षा करते हैं तब हमे भी अपने आप पर विश्वास दिखाना चाहिए। हमें भी अपनी सुरक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। हमें कराटे जूडो का प्रशिक्षण लेना चाहिए जिससे हम अपनी सुरक्षा खुद कर पाएं।
जब हम दृष्टिहीन अपनी सोच बदलेंगे, अपने आप पर विश्वास करेंगे तब ही हम सही मायने में सुरिक्षत और स्वतंत्न हो पाएंगे।
इसी सोच के साथ हम हर उंचाईयां पा लेंगे।


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